Home Remedies For Indigestion: अपच/कुपचन के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि

Home Remedies For Indigestion: अगर आपके या आपके किसी जानने वाले को अपच (Indigestion) की समस्या रहती है तो यह आर्टिकल आपके लिए है। इसमें अपच के लिए उन सभी आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में बताया गया है जिसका इस्तेमाल अपच (Indigestion) के उपचार के लिए किया जाता है। तो चलिए जानते है Indigestion Home Remedies के बारे में।

Home Remedies For Indigestion
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अनानास Home Remedies For Indigestion

यह एक कंटकीय क्षुप होता है, जिसके फल खुरदरा तथा कांटेदार पत्तों के बिच में होता है। अंदर से इसके फल लाल पीला या नारंगी रंग का होता है। अपच के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में अनानास के अच्छी तरिके से पक्के हुए फल के महीन टुकड़े कर उन पर काली मिर्च तथा सैन्धव नमक छांट कर खाने से लाभ होता है।

दालचीनी

इसका वृक्ष लघु कद का होता है, जो सदाहरित रहता है। औषधि के रूप में इसके कांड की छाल का इस्तेमाल होता है जिसमे काफी सुंगध होता है। दालचीनी के छाल का उपयोग अपच, पाचन संस्थानगत विकारो के विशेष लाभकर होता होता है।

सोना पाठा अपच के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि 

यह एक विशाल कद का वृक्ष होता है, जिसकी शाखाएं फैली हुई होती है। इसके पत्ते 3 से 5 फुट लम्बे होते है, तथा पुष्प बड़े जमुनी रंग के होते है। औषधि के रूप में सोना पाठा के मूल की छाल, बीज, पुष्प और पत्र का इस्तेमाल होता है। अपच के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में सोना पाठा के छाल के क्वाथ पिने से अपच तथा तमाम प्रकार के उदर रोगों में लाभ मिलता है।

शतपुष्पा

इसे सोआ भी कहा जाता है, शतपुष्पा एक लघु चिरस्थायी क्षुप होता है जिसकी उचाई 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसके फल अंडाकार होता है। अपच (Indigestion) के उपचार के लिए शतपुष्पा के फल और सत का उपयोग करने से लाभ होता है।

नागदमन

यह एक बहुवर्षीय चिरस्थायी क्षुप होता है, जिसके कांड भूमिजन्य होते है। इसके पत्तो के बीच से पुष्प ध्वज निकलता है। अपच के उपचार लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में नागदमन भूमिजन्य कांड की कोमल शाखाएं या पत्तो के रस का इस्तेमाल किया जाता है।

मकोय 

इसका क्षुप 1 से 2 फुट ऊँचा होता है, जिसपर छोटे छोटे स्वेत वर्णी पुष्प होते है। मकोय जिसे काकमाची भी कहा जाता है इसके फल पकने पर काले तथा मांसल होते है। अपच के उपचार हेतु मकोय के पंचांग का स्वरस पिलाया जाता है।

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चिरयाता अपच के लिए आयुर्वेदिक औषधि

यह लगभग 2 से 4 फीट ऊँचा एक लघु गुल्म क्षुप है, जिसकी कांड चौपहल, काला, नारंगी या बैगनी रंग का होता है। औषधि के रूप में इसके प्रयोज्य अंग सूखे हुए पंचांग, मूल, कांड और पुष्प है। अपच के उपचार के लिए चिरयाता के ताजे हरे पत्तों के रस में काली मिरच और सैन्धव नमक मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

अतीस

यह एक छोटा क्षुप होता है जिसकी उचाई लगभग 3 से 4 फीट ऊँचा होता है। अतीस का कांड गोल होता है जिस पर दो तरह के पत्ते होते है। इसके कंद मूल के पास के पत्ते पंचपत्री एवं गोल जबकि कांड के अग्र भाग की ओर के पत्ते छोटे एवं दंतुर होते है। अतीस के पुष्प नीले या हरित नीलवर्णी होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके मूल कंद ( नवीन सफेद कंद 1 इंच लम्बा तथा 1/2 इंच मोटा) बिना कीड़ा लगा हुआ का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर इसके कंद का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।

बेल

यह एक चिरस्थायी, पतनशील चिकना लघुवृक्ष होता है, जिसकी शखाओं पर लम्बे कांटे होते है। इसके पत्ते सयुक्त रूप से त्रिपर्णी होते है, तथा पुष्प श्वेत हरिताभ होते है। बेल के फल बीजीमांसल होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में बेल का मूल, छाल, पत्र, पक्के व् कच्चे फल तथा पुष्प का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर इसके पक्के फल का शरबत पिने से लाभ मिलता है।

मानकंद

यह एक 3 से 6 फुट ऊँचा महागुल्म होता है, जिसके पत्ते 2 से 3 फूट लम्बे होते है। इसके स्कन्द मांसल युक्त होते है तथा पुष्प लम्बे वृंत पर गुंथे हुए होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके स्कन्द का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर इसके मीठे स्कन्द का चूर्ण का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।

शरीफा

यह एक लघु वृक्ष होता होता है, जो जंगल में प्राकृतिक रूप से उगते है। इसके पुष्प काष्टीय शाखाओं पर उत्पन्न होते है, जो हरित श्वेत पंखुड़ियों वाले होते है। इसके फल हरे पीले समूह में होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके मूल, पत्र, फल एवं बीज का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर फल का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।

रक्त कंचन

यह मध्यम कद का सदा हरित रहने वाला वृक्ष होता है जिसकी छाल बादामी रंग की होती है। रक्त कंचन के पत्ते अति खंडित होते है तथा पुष्प गुलाबी बैगनी रंग के होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके कांड की छाल, पुष्प एवं पत्र का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर इसके मूल का क्वाथ का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।

दारुहल्दी

यह एक पतनशील कंटक युक्त विशाल गुल्म होता है जिसका पुष्प स्वर्णिम पीतवर्णी होता है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके मूल की छाल, कांड, काष्ठ एवं फल का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन होने पर मूल की छाल का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।

देवदार

यह महाकाय चिरस्थायी सुन्दर 150 से 180 फुट ऊँचा वृक्ष होता है। इसके पत्र सुई के आकार के त्रिकोणी होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके पत्र, कोमल टहनियाँ, काष्ठसार एवं तेल का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर देवदार के चूर्ण का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।

पाठा

यह एक घनी लता होती है जिसके कांड पर खांच युक्त रोमेश होते है। इसके पत्र गोल छत्राकार हृदयाकार होते है, तथा पुष्प शुक्ष्म तथा श्वेत हरित होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके मूल एवं छाल का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर मूल के चूर्ण का सेवन करने से लाभ होता है।

हड़जोड़

इसकी लता सूत्रारोही होती है तथा कांड चतुष्कोणी होती है। इसका स्वाद अस्वाद होता है, प्रयोज्य अंग के रूप में इसका मूल, कांड एवं पत्र का इस्तेमाल किया जाता है। कुपचन की समस्या होने पर इसके पत्र एवं कांड का शाक बनाकर खिलाने से लाभ प्राप्त होता है।

धनियां

यह एक ऐसा गुल्म है जिसका औषधि के रूप में फल, पत्र एवं पंचांग का इस्तेमाल होता है। कुपचन की समस्या होने पर धनिया के 5 से 7 ग्राम फल का चूर्ण मिश्री के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

वरुण

यह एक मध्यम कद का 20 से 30 फूट ऊँचा वृक्ष होता है, जिसकी शाखाएं काफी फैली हुई होती है। इसके छाल श्वेत वर्णी होते है तथा पत्ते सयुक्त रूप से त्रिपात्री होते है। इसेक पुष्प पीत श्वेत या गुलाबी होते है। इसके फल नीबू के आकार के होते है जो पकने के बाद लाल रंग के हो जाते है।

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