Home Remedies For Hemorrhoid: यह आर्टिकल उनलोगो के लिए है जिन्हे बवासीर (Hemorrhoid) की समस्या रहती है। इस लेख में उन सभी आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में बताया गया है जिससे बवासीर को ठीक किया जा सकता है। तो चलिए जानते है Hemorrhoid Home Remedies के बारे में।
Table of Contents
अतिबला : Home Remedies For Hemorrhoid
इसको कंघी के नाम से भी जाना जाता है, यह एक श्वेत मखमली रोमावरण युक्त क्षुप है। जिसकी ऊंचाई 1 से 2 मीटर होता है। अतिबला के पुष्प पीतवर्णी होता है तथा फल चक्राकार गोल कंघी के जैस होता है। बवासीर के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में अतिबला के बीज का चूर्ण का सेवन करने से लाभ होता है।
चिरचिरा : बवासीर के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि
यह एक वर्षीय गुल्म होता है, जिसकी उचाई 1 से 3 फुट होता है। इसके पुष्प पीले और गुलाबी रंग के होते है। बवासीर के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में चिरचिरा के बीज का चूर्ण का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
अतिविषा : बवासीर के ईलाज के लिए आयुर्वेदिक औषधि
इसका छुप लगभग 3 से 4 फुट ऊचा होता है, तथा इसके पुष्प नीले या हरित नीलवर्णी होते है। बवासीर के ईलाज के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में अतिविषा के कंद का चूर्ण का सेवन करने से फायदा होता है।
बेल
इसे बिल्व भी कहा जाता है, यह एक चिरस्थायी पतनशील चिकना लघुवृक्ष होता है। इसकी शाखाओं पर लम्बे लम्बे काटे लगे होते है। इसके पुष्प श्वेत हरिताभ रंग के होते है तथा फल बीजीमांसल होता है। बवासीर के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में बेल के फल का सरबत पीने से लाभ होता है।
पियाज
इसको पलांडु भी कहा जाता है, इसकी गुल्म छोटी होती है। इसके पत्र पोली नलिकाओं जैसे होती है, पुष्प गोल गुम्मजदार सफेद गुच्छों में होते है। औषधि के रूप में इसका पत्र और कंद इस्तेमाल किया जाता है। बवासीर के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में लाल कंद का सेवन करने से फायदा होता है।
घृतकुमारी : बवासीर के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि
इसे ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, इसके गुल्म काफी छोटे होते है। इसके पुष्प गुलाबी या लाल रंग के होते है। बवासीर के उपचार के लिए घृतकुमारी के पत्रों के गूदे का सेवन करने से अर्श में फायदा होता है।
जिमी कंद
इसको सुरन कंद के नाम से भी जाना जाता है, इसकी गुल्म काफी मजबूत होती है। इसके पत्ते बड़े आकर के लगभग 1 से 3 फूट चौड़े होते है। जिमी कंद एक विशाल भूमिजन्य कन्द होता है। बवासीर के उपचार के लिए इसके कंद का सेवन करने से लाभ मिलता है।
रक्तपुष्पी
यह एक छोटा चिरस्थायी गुल्म होता है, जिमसे दुग्ध रस निकलता है। रक्तपुष्पी के पुष्प पीले नारंगी रंग के होते है। बवासीर के इलाज के लिए रक्तपुष्पी के पंचांग के सेवन फायदेमंद होता है।
नीम
इसका वृक्ष सघन विशाल 35 से 45 फूट ऊँचा होता है, जिसकी शाखाएं काफी फैली हुए होती है। नीम के पुष्प छोटे छोटे सफेद रंग के शुगन्धित होते है। औषधि के रूप में इसके पंचांग, मूल की छाल, काण्ड की छाल, पत्र, पुष्प और फल का इस्तेमाल होता है। बवासीर के उपचार लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में इसके बीज को गुड़ साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
खैखारवाल
इसे रक्त कंचन या कोविदवार के नाम से भी जाना जाता है, इसका वृक्ष मध्यम कद का होता है। रक्त कंचन का छाल बदामी रंग का होता है तथा पुष्प गुलाबी बैगनी रंग के होते है। बवासीर के इलाज के लिए इसके पुष्प का चूर्ण का सेंवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
कचनार
इसका वृक्ष मध्यम कद का होता है, जिस पर द्विखंडी पत्र लगे होते है। कचनार का फूल गुलाबी बैगनी रंग का होता है जो काफी सुंगधित होता है। बवासीर के उपचार हेतु कचनार के सूखी कलियों का चूर्ण का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
पलाश
इसके वृक्ष की औसतन उचाई 15 मीटर तक होती है, यह एक मध्यम कद का पतनशील वृक्ष है। इसके पते खुरदरे त्रिपत्री होती है, तथा पुष्प चमकीले नारंगी रक्तवर्णी होते है। बवासीर के उपचार के लिए पलाश के बीज का चूर्ण का सेवन करने से फयदा होता है।
चकवड़
यह एक वर्षीय छोटा लगभग 30 से 90 से. मी. ऊँचा गुल्म होता है, जिसके पत्ते सयुक्त रूप से तीन जोड़ी होते है। इसके पुष्प जोड़े में पीतवर्णी रंग के होते है। बवासीर के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में इसके बीज का चूर्ण का सेवन करने से लाभ मिलता है।
हड़जोड़
इसकी लता सूत्रारोहि होती है, कांड चतुष्कोणि होते है। औषधि के रूप में इसके मूल, कांड एवं पत्र का इस्तेमाल किया जाता है। बवासीर के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में हड़जोड़ के स्वरस का सेवन करने से फायदा होता है।
अरनी
यह एक बड़ा झाड़ीदार क्षुप होता है जिसकी शाखाएं रोमश होती है। अरनी के पुष्प सफेद और काफी सुगंधित होते है। औषधि के रूप में अरनी के पंचांग, मूल एवं पत्र का इस्तेमाल किया जाता है। बवासीर के इलाज हेतु अरनी के पंचांग का क्वाथ बनाकर बड़े बर्तन में भर कर उसमे अर्श के रोगी को बिठाकर गर्म क्वाथ का धार करने से लाभ होता है।
सुदर्शन
यह एक ऐसा क्षुप होता है जिसका वल्की कंद बड़ा होता है। सुदर्शन के पत्ते पतले और नोकदार चौड़े होते है, तथा पुष्प चिपटी सफ़ेद 15 से 50 की गिनती में होते है। इसके पुष्प रात में सुगंधित होते है, प्रयोज्य अंग के रूप में इसके पत्र एवं भौमिक काण्ड का प्रयोग किया जाता है। बवासीर के उपचार हेतु सुदर्शन के पत्तो पर एरण्ड का तेल लगाकर इन पत्तो को गर्म कर बांधने से लाभ होता है।
काली मूसली
काली मूसली का लघु गुल्म होता है जिसका मूल कंद मजबूत तथा मूलतन्तु मांसल होते है। इसके पत्र 3 से 16 इंच लम्बे होते है तथा पुष्प पीतवर्णी होते है। प्रयोज्य अंगों के रूप में काली मूसली का मूल तथा भूमिगत कांड का इस्तेमाल होता है। बवासीर में मूलस्तम्भ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम लेने से फायदा होता है।
गाजर
यह बवासीर के उपचार की बहुत ही अच्छी औषधि है, अर्श में गाजर के मूल का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
सरिवन
यह 2 से 4 फुट ऊँचा क्षुप होता है, जिसकी शाखाएं अग्रभाग से झुकी हुई होती है। इसके कांड कोणदार होते है तथा पत्ते एक पत्रक होते है जो 3 से 6 इंच लम्बे होते है। सरिवन के पुष्प श्वेत गुलाबी या जमुनी रंग के होते है। उपचार हेतु इसके प्रयोज्य अंग के रूप में पंचांग, मूल तथा बीज का इस्तेमाल होता है। बवासीर में इसके क्वाथ के सेवन 50 से 100 मि. ली. करने से लाभ होता है।
बिबोला कंद
इसकी लता आरोहण शील होती है तथा कांड रोमशयुक्त होते है। बिबोला कंद के पत्तो में कोणों में गोलकंद सदृश्य रचनाये होती है। इसके नर पुष्प की मंजरिया नीचे की ओर झूलती हुई 2 से 4 इंच लम्बी होती है तथा फल तीन पंख वाले होते है। उपचार हेतु इसके प्रयोज्य अंग के रूप में इसके भूमिगत कंद तथा फल का इस्तेमाल किया जाता है। बवासीर में इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम का सेवन करने से लाभ होता है।
ऐला
यह अति सुगन्धित, उत्तेजक, वातानुलोमक, दीपन, शूलहर, दाह प्रशमन एवं मूत्रल गुण वाला होता है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके सूखे फल तथा बीज का इस्तेमाल होता है। बवासीर में इसके फल का चूर्ण का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
आमलकी
यह एक मध्यम कद का वृक्ष होता है, तथा इसके पत्ते इमली के पत्तो की तरह छोटे छोटे होते है। आमलकी के पुष्प छोटे छोटे बादामी पीतवर्णी होते है। इसके फल डालियों में से सटे होते है, तथा गोल चमकदार तथा छह रेखाओं से युक्त होते है। कच्चे फल हरे होते है तथा पकने पर पिले, सूखने पर काले रंग के हो जाते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके फल तथा बीज का इस्तेमाल होता है। बवासीर में आमलकी के फल का चूर्ण 3 से 10 ग्राम प्रतिदिन दिन में दो बार प्रातः एवं सायं लेने से लाभ होता है।
थूहर
यह एक ऐसा क्षुप होता है जिसके किसी भी अंग को तोड़ने पर दुग्ध रस निकलता है। थूहर ही ऊंचाई 10 से 15 फुट अतिशाखीत होती है। प्रयोज्य अंग में रूप में थूहर के मूल, कांड तथा पत्र का इस्तेमाल होता है। बवासीर में इसके मूल का चूर्ण आधे से एक ग्राम सेवन करने से लाभ होता है।
कलिहारी
यह एक वर्षीय आरोहणशील जो अन्य झाड़ियों या वृक्षो पर चढ़ी होती है। कलिहारी के पत्ते विषमवर्ती होते है तथा पुष्प सुंदर आकर्षक पंखुड़ियों वाली नारंगी व् लाल युक्त होता है। इसका स्वाद कटु व् तिक्त होता है। प्रयोज्य अंग के रूप में कलिहारी के कंद एवं मूल का इस्तेमाल किया जाता है। बवासीर में इसके पंचांग के सत का प्रयोग करने से लाभ प्राप्त होता है।
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