Home Remedies For Dyspepsia: यदि आप अग्निमांध के लिए आयुर्वेदिक ईलाज तलाश रहे है तो यह आर्टिकल आपको जरूर पढ़ना चाहिए। इसमें अग्निमांध के लिए उन सभी आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में बताया गया है जिसका इस्तेमाल अग्निमांध के उपचार के लिए किया जाता है। तो चलिए जानते है Dyspepsia Home Remedies के बारे में।
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महानिम्ब : Home Remedies For Dyspepsia
इसको अरलूमहानिम्ब या घोड़ करंज भी कहा जाता है, महानिम्ब एक विशाल 60 से 80 फुट ऊँचा मृदु वृक्ष होता है। इसके पत्ते संयुक्त रूप से 2 से 3 फुट लम्बे होते है तथा पुष्प पीले हरे रंग का होता है। Dyspepsia (अग्निमांध ) में इसकी छाल का रस डेढ़ औंस की मात्रा में दिन में दो बार पिने से लाभ होता है।
बताड़
इसको काजूतक या काजू बदाम भी कहा जाता है, इसका वृक्ष 5 से 12 मीटर ऊँचा होता है। बताड़ का स्वाद चरपरा व् कटु होता है। बताड़ के फल का सेवन करने से अग्निमांध ठीक होता है।
जलब्राह्मी
इसे नीर ब्राह्मी या जलनीम भी कहा जाता है, यह औषधि पानी में या नमी वाले स्थानों पर प्राकृतिक रूप से उगते है। जलब्राह्मी के पुष्प बैगनी नीले रंग के होते है अग्निमांध के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में जलब्राह्मी के पंचांग का चूर्ण लेने से लाभ होता है।
मिरचा
हरीमिर्च, लाल मिर्च या लका के नाम से इसे जाना जाता है, यह एक छोटा गुल्म होता है जिसकी कांड बैगनी रंग की होती है। मिरचा के पुष्प सफेद रंग के होते है। अग्निमांध में इसके फल का सेवन करने से फायदा होता है।
बरना
इसे वरुण या बरुन भी कहा जाता है, बरना का वृक्ष 20 से 30 फूट ऊँचा होता है जिसकी छाल स्वेत वर्णी होती है। बरना के फूल पीत स्वेत या गुलाबी रंग के होते है। इसके फल निम्बू के आकर के होते है जो पकने बाद लाल हो जाते है। अग्निमांध के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में बरना के छाल का चूर्ण का सेवन करने से लाभ होता है।
मोथा
इसको मुस्तक भी कहा जाता है, मोथा के कंद भूमि के अंदर अण्डाकार के रूप में होते है। इसकी ठंडी पतली होती है जिसके अग्र भाग पर पुष्प वाहक शाखाएं निकली होती है जिसपर पुष्प लगे होते है। अग्निमांध में मोथा का चूर्ण का सेवन करे से लाभ प्राप्त होता है।
छोटी इलायची
ऐला के कांड हरे रंग के होते है, जिस पर एकान्तरित पत्ते लगे होते है जो एक से दो फूट लम्बे होते है। छोटी इलायची के पुष्प नील लोहिताभ एवं छोटे छोटे होते है। फल हल्के पीले या हरिताभ पीत रंग के होते है। अग्निमांध में छोटी इलायची का चूर्ण शहद के साथ लेने से लाभ प्राप्त होता है।
वायविडंग
यह एक झाड़ीनुमा एवं शीघ्र बढ़ने वाला पौधा है, इसकी छाल खुरदरी और टहनिया लम्बी होती है। इसपर सफेद और हल्के पीले रंग के पुष्प होते है जो पकने पर लाल रंग के हो जाते है। अग्निमांध के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में इसके फल के चूर्ण इस्तेमाल किया जाता है।
सूर्यमुखी
यह एक 4 से 8 फुट ऊँचा एक वर्षीय क्षुप होता है, जिसके पुष्प पीतवर्णी जो बड़े मुंडक में होते है। सूर्यमुखी का फल सिप्सेलाशल्क रहित होते है। अग्निमांध में इसके फूलों का रस 10 बून्द दूध में डाल कर पिलाने से लाभ होता है।
द्रोणपुष्पी
यह एक वर्षीय छोटा क्षुप होता है जिसकी उचाई 2 से 3 फिट होता है। द्रोणपुष्पी के पुष्प सफेद रंग के होते है जो गोल मुंडक में होते है। अग्निमांध में द्रोणपुष्पी के स्वरस का इस्तेमाल करने से फायदा होता है।
अग्निमांध के लिए आयुर्वेदिक औषधि टमाटर
इसका प्रयोज्य अंग फल होता है, टमाटर के पुष्प छोटे पीतवर्णी होते है कच्चे फलहरे पकने के बाद लाल रंग के हो जाते है। टमाटर का स्वाद मधुर आम्ल होता है। अग्निमांध के लिए आयुर्वेदिक औषधि रूप में टमाटर का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
पिपर मिन्ट
यह एक सुगंधित प्रसरणशील चिरस्थायी क्षुप होता है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के अभिमुखी होते है। पिपर मिन्ट के पुष्प छोटे छोटे सफेद रंग या हल्के रंग के होते है। अग्निमांध में पिपर मिन्ट के पंचांग का इस्तेमाल करने से लाभ प्राप्त होता है।
कलौंजी
यह एक लघु क्षुप होता है, जिसके पत्र लम्बे होते है। कलौंजी के पुष्प अति विभाजित नीलवर्णी होते है। इसके बीज त्रिकोणक गहरे काले रंग के होते है किन्तु अंदर से सफेद तथा सुंगन्धित होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसका बीज का इस्तेमाल किया जाता है। अग्निमांध की समस्या होने पर चित्रक मूल के साथ कलौंजी के चूर्ण का सेवन करने से लाभ होता है।
सोआ
यह एक लघु चिरस्थायी क्षुप है जो लगभग 1 से 3 फूट ऊँचा होता है। इसके पत्ते सयुंक्त अतिविभाजित होते है, तथा पुष्प पीतवर्णी होते है जो छत्र में होते है। इसका फल अंडाकार किनारे पर सपक्ष, चिपटे उन्तोदर होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके फल एवं सत का इस्तेमाल किया जाता है। अग्निमांध की समस्या होने पर सोआ का क्वाथ या फल का चूर्ण का सेवन करने से लाभ मिलता है।
भुँई आमला
यह एक वर्षायु लघु क्षुप होता है जिसकी ऊंचाई 10 से 30 से. मी. तक होती है। इसकी शाखाएं सीधी तथा पतली होती है। पत्ते छोटे छोटे एकांतर तथा दीर्घ वृताकार होते है तथा पुष्प छोटे श्वेत हरिताभ होते है जो पत्र कोण में होते है। इसके फल छोटे होते है जो आंवले जैसे होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में मूल, ताजे पत्र एवं पंचांग का इस्तेमाल किया जाता है। अग्निमांध की समस्या होने पर पंचांग का स्वरस पीने से लाभ प्राप्त होता है।
कुटकी
यह वनौषधि चिरस्थायी, काष्ठीय रोमशक्षुप होता है, जिसका भूमिजन्य काण्ड बहुवर्षीय और पतला तथा लम्बा होता है। इसके पत्ते चिकने, मूल की ओर संकुचित, आगे की ओर चौड़े तथा लहरदार किनारे वाले होते है। कुटकी के पुष्प सफेद या नीलवर्णी जो डण्डी के अंत में गुच्छों में होते है। प्रयोज्य अंग के रूप में इसके मूल तथा भौमिक तना का इस्तेमाल किया जाता है। अग्निमांध की समस्या होने पर इसके मूल का चूर्ण का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
पिप्पली
यह एक पतली लता होती है जिसकी शाखाएं प्रसरि तथा जिनकी नीचली सतह पर से मूल उत्पन्न होते है। इसके फल श्यामवर्णी छोटे छोटे गुच्छे में लगते है। इसका स्वाद मधुर कटु होता है प्रयोज्य अंग के रूप में इसका मूल, सूखे,कच्चे फल का इस्तेमाल किया जाता है। अग्निमांध की समस्या होने पर पिप्पली चूर्ण मधु के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
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